मिट गया वो इस कदर

मिट गया वो इस कदर कि राख में भी ना मिला.
था वो साया मौत का जो अश्क फिर से भर गया.

ढूँढा उसे हर शाख पर हर कौम में हर चक्षु में
पूँछा जो हर एक मोड़ से तो हर जगह बस ये मिला
कि मिट गया वो इस कदर कि राख में भी ना मिला.

अर्ज़-ए-इबादत खूब की हर कब्र पे हर घाट पे
क़ाज़ी मिले पंडे मिले मिलके सभी कहने लगे
कि मिट गया वो इस कदर कि राख में भी ना मिला.

ना लफ्ज़ थे ना इल्म था जज़्बात थे कुछ इस कदर
नज़्मे लिखीं गजलें बनी कुछ पंक्तियाँ ऐसी बनी
कि मिट गया वो इस कदर कि राख में भी ना मिला.

ख्वाब थे कुछ याद से सिमटे से और बेहाल से
फ़रियाद की जब रब से कि कर दे इनायत हमपे भी
तो बस यही गूंजा वहां कर ले यकीं ऐ मेरे दिल
कि मिट गया वो इस कदर कि राख में भी ना मिला.

(kaushal kishor) kanpur

Comments

  1. किसी खास के खोने का गम क्या होता है ...ये तो वही जाने जिसने कभी किसी को खोया हो....सब जगह हम ढूंढते है पर शायद जो चला जाता है वो फिर कभी नहीं मिलता ...बस यही ध्यान में रख कर कुछ अपने तरीके से लिखने की कोशिश की है .....इस नज़्म को भी कुबूल करें और लेखनी में गलतियों के लिए छमा करें और इंकित करें..... आपके कमेंट्स के लिए उत्सुक......

    आपका कौशल किशोर.

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  2. bhut sunder....!!! kaushal bhai

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  3. bhut doondha,bhut pukara,but intazaar kiya uska....tadap rahi thi aankhen,doob raha tha dil ek jhalak ke liye...abhi to tha yahan, ab naa jaane kahan ojhal ho gaya woh nazar ke dayre se....raund gaya woh dil,chode gaya bus yaadein,reh gaye hum bus lete hue thandi aahein......WOH MITT GAYA IS KADAR KI RAKH MEIN BHI NA MILA!!!!

    bhut badiya!!Kaushal Bhai
    Gaurav Kumar.....

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  4. आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !
    एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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