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Showing posts from November, 2011

रूहें तो अब भी एक हैं

इश्क में हम भी जो थे और इश्क में वो भी जो थे प्यार कुछ हमको भी था और प्यार कुछ उनको भी था फरमाईशें तो कुछ मेरी भी थीं फरमाईशें तो कुछ उनकी भी थीं छुप छुप के फिर हम भी मिले छुप छुप के फिर वो भी मिले मोहब्बत जो यूं फिर जवां हुई तन्हाईयाँ भी सब मिटने लगीं कस्मे हुईं वादे हुए रुसवाईयों से भी डरने लगे सपने भी फिर देखे गए आखों से जो न बोझिल हुए शाहिद जो कुछ मेरे बने शाहिद जो कुछ उनके बने और फिर क्या था........... टूटे सभी वो ताज महल ख्वाबों में जो हमने चुने इक कब्र फिर मेरी खुदी इक कब्र फिर उनकी खुदी कस्मे दबीं वादे दबे और जिस्म भी दाबे गए रोते हैं फिर तकदीर को कैसे मिलें कैसे मिलें पर अक्ल थी मारी गयी जो जिस्म के भूखे थे हम रूहें तो अब भी एक हैं और बदनामियों से दूर हैं हम भी हैं खुश वो भी हैं खुश और खुशनमाँ माहौल है रूहें तो अब भी एक हैं रूहें तो अब भी एक हैं । (कौशल किशोर) कानपुर

हिना के जैसी सुन्दर थी

वो कितनी प्यारी  प्यारी  थी कुछ खुशबू सौंधी  सौंधी थी कुछ हिना के जैसी सुन्दर थी कुछ गुलशन जैसी महकी थी कुछ समीर सी चंचल थी कुछ माखन सी तासीर भी थी वो कितनी प्यारी प्यारी थी एक दिल था भोला  भाला सा जिसमे कितनी गहराई थी नैना थे बिलकुल हिरनी से दुनिया की जिनमे परछाईं थी सीरत तो बिलकुल ऐसी कि   जैसे खुदा से शोहरत पायी थी वो कितनी प्यारी प्यारी थी. जब मुझे देखती थी वो तब सारी खुशियाँ मिल जाती थी सोंचा इक दिन मैंने कि बस उसकी तस्वीर बना डालूँ पर बन कर जब तैयार हुई तो अपनी ही बेटी पाई थी. अब इतना ही बस कहना है वो कितनी प्यारी प्यारी है. वो सबसे  प्यारी प्यारी है. - कौशल किशोर, कानपुर

तू भी कल प्यार में हो

मत उठा मेरे प्यार पे ऊँगली ऐ शाहिद  मत करा  दूर दो रूंहों को अलग ऐ शाहिद  हम भी अल्लाह के बन्दे हैं कुछ तो डर ऐ शाहिद  कहीं ऐसा न हो कि, तू भी कल प्यार में हो और बन जाऊं मैं शाहिद