ग़मों की काली छाया
जो तुमने दास्ताँ अपनी सुनाई आँख भर आई
बहुत देखे थे दुःख मैंने मगर क्यूं आँख भर आई
ग़मों से दुश्मनी लगती है बिलकुल दोस्ती जैसी
खुदा भी जल गया हमसे कि जब ये दोस्ती देखी
खराशें दिल में हैं तो फिर मुझे नश्तर से क्या डर है
डराना है अगर मुझको तो फिर कुछ और गम देदो
सुकूँ मुझको नहीं मिलता है इस बेपाख़ दुनिया में
तमन्ना अब तो इतनी है कि फिर से जनम देदो
जहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ हों और खुशियाँ ही खुशियाँ हों
ग़मों की काली छाया से न कोई इल्म मेरा हो
बहुत देखे थे दुःख मैंने मगर क्यूं आँख भर आई
ग़मों से दुश्मनी लगती है बिलकुल दोस्ती जैसी
खुदा भी जल गया हमसे कि जब ये दोस्ती देखी
खराशें दिल में हैं तो फिर मुझे नश्तर से क्या डर है
डराना है अगर मुझको तो फिर कुछ और गम देदो
सुकूँ मुझको नहीं मिलता है इस बेपाख़ दुनिया में
तमन्ना अब तो इतनी है कि फिर से जनम देदो
जहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ हों और खुशियाँ ही खुशियाँ हों
ग़मों की काली छाया से न कोई इल्म मेरा हो
वाह!... बेहद खूबसूरत अश`आर!
ReplyDeleteबहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत बढ़िया....आपसे निवेदन है कि कठिन शब्दों जैसे 'बेपाख़' इत्यादि के अर्थ भी साथ में ही दे दिया करें जिससे मुझ जैसे बहुतों को बहुत कुछ नया सीखने में मदद मिलेगी
ReplyDeleteखराशें दिल में हैं तो फिर मुझे नश्तर से क्या डर है
ReplyDeleteडराना है अगर मुझको तो फिर कुछ और गम देदो
खुबसूरत लफ़्ज़ों का मजमुआ ... ग़ज़ल क्या कही बस ग़म को कागज़ पे उतार दिया..
Badhiya....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
अच्छी नज़्म
ReplyDeleteबढ़िया अशार...
ReplyDeletebahut badhiya gazal.
ReplyDeletebahut sundar rachana hai...
ReplyDeleteबहुत खूब कहा है आपने
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
ग़मों से दुश्मनी लगती है बिलकुल दोस्ती जैसी
ReplyDeleteखुदा भी जल गया हमसे कि जब ये दोस्ती देखी.बहुत खूब.
जो तुमने दास्ताँ अपनी सुनाई आँख भर आई
ReplyDeleteबहुत देखे थे दुःख मैंने मगर क्यूं आँख भर आई
dard jab kisi apne ka ho to jyada saalta hai. achha laga aapko padhna.
shubhkamnayen
very informative post for me as I am always looking for new content that can help me and my knowledge grow better.
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