अन्जान राह पे चलते चलते थक गये हैं अब कदम हो गयी है इन्तहां दुखने लगे हैं अब जखम करता रहा ज़ो जी हुजूरी और गिरा हर बार हूँ हिम्मत तो देखो इक बार फिर लड़ने को मै तैयार हूँ
चुप हूँ पर मेरी चुप्पी को ख़ामोश न समझो मै तो इशारों से ही तुझे राख़ बना सकता हूँ ख़ुशनसीब है तू जो नाखुदा हमारा एक है कश्ती तो मैं तूफाँ में भी चला सकता हूँ . शुक्र कर ख़ुदा का जो हम साथ हैं इस राह पर तेरे ग़ुरूर को हर राह पे झुका सकता हूँ इंसान है इंसानियत को कुछ तो इज्ज़त दे तेरी हैवानियत को हर लफ्ज़ से मिटा सकता हूँ
जो तुमने दास्ताँ अपनी सुनाई आँख भर आई बहुत देखे थे दुःख मैंने मगर क्यूं आँख भर आई ग़मों से दुश्मनी लगती है बिलकुल दोस्ती जैसी खुदा भी जल गया हमसे कि जब ये दोस्ती देखी खराशें दिल में हैं तो फिर मुझे नश्तर से क्या डर है डराना है अगर मुझको तो फिर कुछ और गम देदो सुकूँ मुझको नहीं मिलता है इस बेपाख़ दुनिया में तमन्ना अब तो इतनी है कि फिर से जनम देदो जहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ हों और खुशियाँ ही खुशियाँ हों ग़मों की काली छाया से न कोई इल्म मेरा हो
आये दिन हम न्यूज़ पपेर्स में छेड़छाड़ क किस्से पढ़ते रहते हैं शायद हम सभी को शर्मिंदगी होती है और डरते हैं कि कहीं .... मैंने इस बारे में कुछ लोगों से बात की और कुछ पंक्तियाँ तैयार की जो आप से बांटना चाहता हूँ . मत देख ऐसे मैं तमाशा बीन तो नहीं खुबसूरत हूँ पर घूरने की चीज़ तो नहीं घर से निकलते ही डर लगता है पर किस किस से डरूं ये मालूम ही नहीं मिला जो खुदा तो पूंछना ये है कि खूबसूरती सबकी एक सी क्यूँ नहीं जब दिल भी सबका एक सा तो रंग रूप और सोच एक सी क्यों नहीं तालीम दी रोशन किया पर इनको नफ्स पे काबू क्यूँ नहीं पहचान खो न जाये ये सोच के घर से निकलना है सारी बंदिशें तोड़ के आंगे बढ़ना है तू कर या न कर पर इस सोंच को बदलना है कि हम तमाशबीन ही नहीं .