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Showing posts from January, 2012

जोश

अन्जान राह पे चलते चलते थक गये हैं अब कदम हो गयी है इन्तहां दुखने लगे हैं अब जखम करता रहा ज़ो जी हुजूरी और गिरा हर बार हूँ हिम्मत तो देखो इक बार फिर लड़ने को मै तैयार हूँ

चुप हूँ पर

चुप हूँ पर मेरी चुप्पी को ख़ामोश न समझो मै तो इशारों से ही तुझे राख़ बना सकता हूँ ख़ुशनसीब है तू जो नाखुदा हमारा एक है कश्ती तो मैं तूफाँ में भी चला सकता हूँ . शुक्र कर ख़ुदा का जो हम साथ हैं इस राह पर तेरे ग़ुरूर को हर राह पे झुका सकता हूँ इंसान है इंसानियत को कुछ तो इज्ज़त दे तेरी हैवानियत को हर लफ्ज़ से मिटा सकता हूँ