ग़मों की काली छाया
जो तुमने दास्ताँ अपनी सुनाई आँख भर आई बहुत देखे थे दुःख मैंने मगर क्यूं आँख भर आई ग़मों से दुश्मनी लगती है बिलकुल दोस्ती जैसी खुदा भी जल गया हमसे कि जब ये दोस्ती देखी खराशें दिल में हैं तो फिर मुझे नश्तर से क्या डर है डराना है अगर मुझको तो फिर कुछ और गम देदो सुकूँ मुझको नहीं मिलता है इस बेपाख़ दुनिया में तमन्ना अब तो इतनी है कि फिर से जनम देदो जहाँ खुशियाँ ही खुशियाँ हों और खुशियाँ ही खुशियाँ हों ग़मों की काली छाया से न कोई इल्म मेरा हो