रूहें तो अब भी एक हैं
इश्क में हम भी जो थे और इश्क में वो भी जो थे प्यार कुछ हमको भी था और प्यार कुछ उनको भी था फरमाईशें तो कुछ मेरी भी थीं फरमाईशें तो कुछ उनकी भी थीं छुप छुप के फिर हम भी मिले छुप छुप के फिर वो भी मिले मोहब्बत जो यूं फिर जवां हुई तन्हाईयाँ भी सब मिटने लगीं कस्मे हुईं वादे हुए रुसवाईयों से भी डरने लगे सपने भी फिर देखे गए आखों से जो न बोझिल हुए शाहिद जो कुछ मेरे बने शाहिद जो कुछ उनके बने और फिर क्या था........... टूटे सभी वो ताज महल ख्वाबों में जो हमने चुने इक कब्र फिर मेरी खुदी इक कब्र फिर उनकी खुदी कस्मे दबीं वादे दबे और जिस्म भी दाबे गए रोते हैं फिर तकदीर को कैसे मिलें कैसे मिलें पर अक्ल थी मारी गयी जो जिस्म के भूखे थे हम रूहें तो अब भी एक हैं और बदनामियों से दूर हैं हम भी हैं खुश वो भी हैं खुश और खुशनमाँ माहौल है रूहें तो अब भी एक हैं रूहें तो अब भी एक हैं । (कौशल किशोर) कानपुर